महाराज सूरजमल विशेष, ब्राह्मण कन्या की रक्षा के लिए कर दिया दिल्ली पर हमला

महाराज सूरजमल किशोरावस्था से ही बहुत ताकतवर, साहसी यौद्धा, धैर्यवान, गंभीर, दयालु व दूरदर्शी तथा राष्ट्रवादी सोच के मालिक थे। दूरदर्शी सोच के कारण ही उन्होंने अजेय दुर्ग लोहागढ़ की स्थापना की थी। महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 को भरतपुर के सिनसिनी गांव में हुआ था। महाराज सूरजमल के नेतृत्व में जाटों ने मुगलों को परास्त कर आगरा, फरुक्खाबाद से लेकर बिजनौर, पानीपत, दिल्ली तक के क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। 25 दिसम्बर 1763 की रात को दिल्ली के शाहदरा इलाके के पास हिंडन नदी के किनारे पर मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में महाराज सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए थे। महाराज की वीरता और शौर्य का मुगलों में इस कद़र खौफ था कि मृत्यु के पश्चात भी मुगलों को सहज ही ये विश्वास नहीं हुआ था कि सूरजमल मारे गए। मुगल शासक ये कहते थे कि 'जाट मरा तब जानिए जब तेरहवीं हो जाएं।' किशनवीर सिंह ने ग्रामीण युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि महाराज सूरजमल ऐसे महान प्रतापी और पराक्रमी यौद्धा थे जो दोनों हाथों से तलवार चलाते थे।
दिल्ली के सेनापति ने किया था हिंदू कन्या का अपहरण
हरियाणा के इतिहासकार दिलीप अहलावत की पुस्तक का जिक्र करते हुए बताया, कि दिल्ली के वजीर के सेनापति ने अपने हरम में रखने के लिए एक ब्राह्मण कन्या का अपहरण कर लिया था. ब्राह्मण कन्या ने बड़ी ही चालाकी से सेनापति से सोचने के लिए कुछ दिन की मोहलत मांगी और मौका पाकर हिंदू कन्या ने भरतपुर के महाराजा सूरजमल सिंह को एक पत्र लिखा. पत्र में महाराजा सूरजमल से खुद की इज्जत और धर्म की रक्षा करने की गुहार लगाई.
ब्राह्मण कन्या का पत्र पाकर और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए महाराजा सूरजमल ने दिल्ली के वजीर नजीबुद्दौला पर हमला बोल दिया. उसके बाद करीब करीब दिल्ली को फतह करने के बाद महाराजा सूरजमल अपने सेनापतियों के साथ परामर्श करने के लिए हिंडन नदी के किनारे गए, जहां दुश्मन की सेना घात लगाए बैठी हुई थी. दुश्मन की सेना ने अचानक महाराजा सूरजमल पर हमला कर दिया और वह शहीद हो गए.
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