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Aravalli Issue: क्या अरावली पर सच में फैलाया जा रहा है भ्रम, जानिए क्या 100 मीटर के पैरामीटर का सच?

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राष्ट्रीय
24 Dec 2025, 02:55 pm
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रिपोर्टर : Jyoti Sharma

Aravalli Facts: अरावली रेंज पर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले पर पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है। पर्यावरण एक्टिविस्ट से लेकर आम जनता और सेलेब्रिटी भी इस पर अपनी चिंता जता रहे हैं और अपनी-अपनी राय रख रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी अरावली पर इस फैसले के लिए सीधे-सीधे केंद्र को जिम्मेदार ठहरा रही है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot Save Aravalli Protest) ने तो सेव अरावली के नाम से सोशल मीडिया पर एक अभियान भी छेड़ दिया है जिसे कई नेताओं का साथ मिल रहा है। लेकिन केंद्र सरकार और बीजेपी नेता कांग्रेस पर भ्रम फैलाने का आरोप लगा रहे हैं, वो कह रहे हैं कि अरावली पर जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला है उस पर कांग्रेस जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर रही है। ऐसे में लोगों के बीच भी ये चर्चा तेज हो गई है कि अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का पूरा सच क्या है, आखिर उन्हें जो बताया जा रहा है वो सही है या फिर वो इस ऑर्डर की पूरी सच्चाई से अभी भी अनजान हैं?

अरावली को लेकर इस तरह के भ्रम की स्थिति लगभग सभी लोगों में बनी हुई है। इसे दूर करने के लिए आपको अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ठीक से और गौर से पढ़ना होगा और ये जानना होगा कि केंद्र ने किस आधार पर ये पैरामीटर्स सेट किए हैं, और ये पैरामीटर्स क्या खनन को खुली छूट दे रहे हैं?

क्या है सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर?

सबसे पहले आपको सुप्रीम कोर्ट का अरावली पर दिया गया पूरा ऑर्डर जानना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जिस नई परिभाषा को मंजूरी दी है वो ये है कि अरावली पहाड़ यानी Aravalli Hills वो होगी, जो आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची है। इसमें पहाड़ की ढलान और उससे जुड़े क्षेत्र भी शामिल हैं। वहीं अरावली रेंज यानी अरावली पर्वतमाला वो होगी जहां दो या दो से ज्यादा अरावली पहाड़ एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हैं, इनके बीच की खाली जगह यानी घाटी या छोटे टीलों को भी संरक्षण मिलेगा। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केंद्र सरकार की तरफ से फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के हवाले से की गई सिफ़ारिशों के बाद ही आया है। इस पर केंद्र सरकार ने भी कई बार कहा है कि अरावली की ये नई परिभाषा पूरे पहाड़ी तंत्र को शामिल करती है, जिसमें ढलानें, आसपास की ज़मीन और बीच के इलाक़े भी शामिल हैं। जिससे पहाड़ी समूहों और उनके आपसी संबंधों की सुरक्षा हो सके।फैसले पर क्या कह रहे हैं पर्यावरण एक्टिविस्ट?

इस नई परिभाषा से पर्यावरण एक्टिविस्ट्स में ये चिंता है कि सिर्फ़ ऊंचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित करने से कई ऐसी पहाड़ियों पर खनन और निर्माण के लिए दरवाज़ा खुल सकता है जो कि एक बड़ा खतरा है। जो पहाड़ियां 100 मीटर से छोटी हैं, और झाड़ियों से ढंकी हुईं हैं वो पर्यावरण के लिए ज़रूरी हैं। छोटी-छोटी झाड़ियों से ढँकी पहाड़ियां भी रेगिस्तान बनने से रोकने, जमीन के पानी को रीचार्ज करने और स्थानीय लोगों के रोज़गार में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं। इनका कहना है कि अरावली को सिर्फ़ ऊंचाई से नहीं बल्कि उसके पर्यावरणीय, भूगर्भीय और जलवायु के महत्व से परिभाषित किया जाना चाहिए।

इनका कहना है कि ज़मीन का कोई भी हिस्सा जो भूगर्भीय तौर पर अरावली का हिस्सा है और पर्यावरण संरक्षण या रेगिस्तान बनने से रोकने में अहम भूमिका निभाता है, उसे अरावली माना जाना चाहिए, चाहे उसकी ऊंचाई कितनी भी हो।

4 राज्यों तक फैली है अरावली

दरअसल अरावली हिल्स का ऊपरी हिस्सा दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा तक फैला हुआ है। पहले दिल्ली का रायसीना हिल भी अरावली का हिस्सा था लेकिन ब्रिटिश काल में ही इसे समतल कर दिया गया था। अरावली के बीच का हिस्सा दिल्ली से राजस्थान के उदयपुर तक फैला हुआ है। वहीं निचला हिस्सा गुजरात तक फैला हुआ है। सबसे अहम बात ये है कि पूरी अरावली रेज का 80 प्रतिशत हिस्सा यानी 550 किमी का हिस्सा राजस्थान में है। इसकी सबसे ऊंची चोटी जिसे गुरु शिखर भी कहते हैं, वो 1,727 मीटर की है जो माउंट आबू में है। पूरी अरावली रेज की लंबाई लगभग 700 किलोमीटर की है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक अरावली में कुल 1281 पहाड़ थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक अब इसमें से महज 1048 पहाड़ ही 100 फीट से नीचे हैं। ऐसे में लोगों को ये लग रहा है कि अब इन 1048 पहाड़ों पर खनन होगा और राजस्थान की करीब 90 प्रतिशत पहाड़ियां संरक्षण के बाहर चली जाएंगी।

कहां से आया 100 मीटर वाला फॉर्मूला

अब सवाल ये भी आता है कि आखिर ये 100 मीटर वाला पैरामीटर लिया किसलिए गया है। तो बता दें कि ये पैरामीटर आता है पोलिगोन लाइन नामक टर्म से। जो 2008 की GSI यानी जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सामने आया था। दरअसल अरावली को लेकर कांग्रेस सरकार में एक कमेटी बनी थी। इसके मेंबर GSI के पूर्व महानिदेशक दिनेश गुप्ता थे। उन्होंने इस शब्द का मतलब समझाते हुए बताया था कि उस समय पेश की गई रिपोर्ट में 100 मीटर या इससे से ऊंची दो पहाड़ियों के बीच 100 मीटर के कम की पहाड़ी को पॉलिगोन नाम दिया गया था। इसका मतलब ये था कि बीच की छोटी पहाड़ी भी उन ऊंची संरचनाओं का हिस्सा होगी और वो 100 मीटर के दायरे में ही मानी जाएगी। अगर इसी चीज को उदाहरण के तौर पर बताएं तो माना कि विद्याधर नगर से कोई लाइन खींची और किशनबाग आते-आते पहाड़ी 100 मीटर या इससे ऊंची हो गई तो विद्याधर नगर से किशनबाग तक का इलाका पॉलिगोन में आ गया यानी वहां पर खनन नहीं हो सकता था।

लेकिन 2025 की रिपोर्ट में इस पॉलिगोन को बदल कर कंटूर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। कंटूर का मतलब है सेम हाइट को ज्वाइन करना। उदाहरण के तौर पर किसी जगह पर पहाड़ी की ऊंचाई समुद्र चल से 50 से 60 मीटर है, और दूसरी जगह पर 100 मीटर है, तो दूसरी जगह को छोड़कर पहली वाली जगह में माइनिंग की जा सकेगी।

केंद्र सरकार ने साफ की स्थिति

खनन को लेकर जो लोगों में चिंताएं है उसे दूर करते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस तर्क को साफ किया है। जिसके मुताबिक ये मान लेना ग़लत है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली हर ज़मीन पर खनन की इजाज़त होगी। वहीं अरावली पहाड़ियों या शृंखलाओं के भीतर नए खनन पट्टे नहीं दिए जाएंगे। पुराने पट्टे भी तभी जारी रह सकते हैं, जब वो टिकाऊ खनन के नियमों का पालन करें। इसके अलावा मंत्रालय ने यह भी साफ किया है कि संरक्षित जंगल, पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र और वेटलैंड में खनन पर पूरी तरह रोक है। यहां खनन हो ही नहीं सकता ना ही इसकी परमिशन दी जा सकती है। हालांकि कुछ विशेष, रणनीतिक और परमाणु खनिजों के लिए कानूनी तौर पर परमिशन दी जा सकती है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी कहा कि 1,47,000 वर्ग किलोमीटर में फैली अरावली शृंखला का सिर्फ़ लगभग 2% हिस्सा ही संभावित तौर पर खनन के लिए इस्तेमाल हो सकता है और वो भी तब जब इस पर व्यापक रिसर्च हो और इसके आधिकारिक मंजूरी मिले।

लोगों का विरोध औऱ चिंताओं को देखते हुए बीजेपी सरकार ने भी अब ये साफ किया है कि 99.8 प्रतिशत अरावली सुरक्षित है। सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ये नियम हैं। 500 मीटर के तहत छोटी पहाड़ियों और घाटियों को सुरक्षा के घेरे में रखा गया है। नई परिभाषा का लक्ष्य जंगलों और पहाड़ों की कटाई नहीं बल्कि मैपिंग और अवैध कब्जे पर रोक है।


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