बांग्लादेश में हिंसा से जागा कांग्रेस का 'हिंदू प्रेम', क्या ये वोट बटोरनी की रणनीति या कुछ और...?

Bangladesh Violence against Hindu: बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार का मुद्दे पर भारत समेत पूरी दुनिया में लोगों का गुस्सा देखने को मिल रहा है। सिर्फ आम जनता ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े ग्लोबल लीडर्स और कई देशों की संसद तक में ये मुद्दा उठाया गया है। इसी बीच भारत की सियासत में भी अजीब सा बदलाव देखने को मिल रहा है। खासकर कांग्रेस पार्टी को लेकर। क्योंकि जिस कांग्रेस पार्टी पर दशकों से ये आरोप लगता रहा है कि वो हिंदुओं के हितों की बात करने से कतराती है, आज वही कांग्रेस हिंदुओं के समर्थन में खुलकर बोलती नजर आ रही है, भले ही वो हिंदू बांग्लादेश के हों। कांग्रेस की पॉलिटिक्स में इतना बदलाव आना किसी बड़ी रणनीति की तरफ इशारा कर रहा है। क्योंकि यहां सवाल ये नहीं है कि कांग्रेस हिंदुओं के लिए बोल रही है, बल्कि सवाल ये है कि अब कांग्रेस क्यों हिंदुओं के पक्ष में बोल रही है। हिंदुओं के अधिकारों और उन पर अत्याचार के मु्द्दे पर कांग्रेस 70 सालों की चुप्पी साधे रही और अब अचानक उसका दर्द छलक रहा है।
70 साल बाद क्यों जागी हिंदुओं के लिए संवेदना
हिंदुओं मु्द्दे पर कांग्रेस की इस बदलती हुई सियासत पर सवाल इसलिए भी बनता है क्योंकि भारत की आज़ादी के बाद से लेकर 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही। कभी पूर्ण बहुमत से तो कभी गठबंधन के सहारे। लेकिन इन सालों में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों पर कांग्रेस की आवाज़ बेहद कमजोर रही और अब अचानक बांग्लादेशी हिंदुओं को लेकर कांग्रेस नेताओं की चिंता सोशल मीडिया पर दिखने लगी। तो सवाल उठना लाज़मी है कि 70 सालों बाद ही ये संवेदना क्यों जागी?
आपको बता दें कि बांग्लादेश में 30 साल के हिंदू नागरिक और फैक्ट्री वर्कर दीपू चंद्र दास की दंगाई भीड़ के बेरहमी से हत्या करने और उसके शव को पेड़ से लटका कर जलाने पर कई कांग्रेस के कई नेताओं ने बयान दिए थे। जिसमें उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की काफी आलोचना की थी। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर बांग्लादेश में हिंदुओं सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ती हिंसा और अत्याचार को बेहद चिंताजनक बताया था और भारत सरकार से इस मुद्दे पर गंभीरता से कदम उठाने की अपील की थी। उन्होंने केंद्र सरकार से इस मुद्दे को ध्यान में लेने और कूटनीतिक तौर से उठाने का आग्रह भी किया था। वहीं कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने तो ये कह दिया था कि अगर प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री होतीं तो ऐसे मामलों में कार्रवाई तेज होतीं। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर प्रियंका गांधी के बयान का समर्थन किया था। इनके अलावा इमरान प्रतापगढ़ी, दिग्विजय सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, अशोक गहलोत, अशोक चांदना जैसे कई नेताओं ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आवाज़ उठाई थी। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि बांग्लादेश में हिंदुओं और अल्पसंख्याकों के खिलाफ जो अत्याचार हो रहा है वो बेहद निंदनीय है, केंद्र सरकार की चुप्पी से बांग्लादेश में सक्रिय भारतविरोधी ताकतों को और बल मिल रहा है। गहलोत ने केंद्र पर मूकदर्शक बने रहने की बात भी कह दी थी।
CAA पर कांग्रेस को क्या हुआ था?
लेकिन यहां सवाल ये है कि क्या ये वही कांग्रेस है, जिसने CAA जैसे कानून का विरोध किया था, जो इन्हीं प्रताड़ित हिंदुओं को भारत में शरण देने के लिए लाया गया था? क्योंकि जब नागरिकता संशोधन कानून केंद्र सरकार लेकर आई तो कांग्रेस ने उसे मुस्लिम विरोधी बताकर सड़क से संसद तक विरोध किया था। उस समय कांग्रेस ने कभी नहीं कहा कि ये कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में पीड़ित हिंदुओं के लिए ज़रूरी है। लेकिन आज वही कांग्रेस उन्हीं बांग्लादेशी हिंदुओं को लेकर चिंता जताती दिख रही है। तो कांग्रेस पर सवाल उठना लाजिमी है।
वहीं कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति में हिंदू वोटर एक निर्णायक शक्ति बनकर उभरा है। और लगातार चुनावी हार के बाद कांग्रेस को भी ये एहसास हुआ कि सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक या सिर्फ अल्पसंख्यक तुष्टिकरण अब सत्ता की गारंटी नहीं है। इसीलिए अब कांग्रेस नेताओं का कभी मंदिर दर्शन, कभी जनेऊधारी राजनीति, और अब बांग्लादेशी हिंदुओं का मुद्दा...इसे ही कहा जा रहा है, सॉफ्ट हिंदुत्व। ऐसे में अब ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस का ये बदला हुआ रवैया सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित है या धरातल पर कुछ और दिखाई देगा, क्या कांग्रेस वास्तव में हिंदू हितों के लिए नीतिगत फैसले लेने के लिए तैयार है? या फिर ये सिर्फ अपनी मुस्लिम परस्त छवि को धोने की कोशिश है?
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