गुजरात की राजनीति में भूचाल, नई सियासी करवट या भविष्य की रणनीति?

गुजरात की राजनीति इन दिनों एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। हाल ही में राज्य सरकार के सभी मंत्रियों के सामूहिक इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि इससे राज्य में सत्ता समीकरण भी पूरी तरह बदलते नजर आ रहे हैं। यह घटनाक्रम अचानक नहीं आया, बल्कि इसके संकेत पिछले कुछ समय से पार्टी के भीतर चल रही गतिविधियों में दिखाई दे रहे थे।
गुजरात वह राज्य है जिसने देश को नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे कद्दावर नेता दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए गुजरात आज ने नहीं बल्कि जनसंघ के समय एक ऐसा गढ़ है जिसे भेद पाना कांग्रेस के लिए हमेशा से एक चुनौती रहा है
हाल के दिनों में हर्ष संघवी एक ऐसा नाम है जो इस सियासी भूचाल में एक नया चेहरे के रूप में उभरकर सामने आया है। पहले वे राज्य के गृह मंत्री के रूप में कार्यरत थे, लेकिन अब उन्हें गुजरात का उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। यह पदोन्नति केवल एक औपचारिक बदलाव नहीं, बल्कि यह संकेत है कि पार्टी उन्हें भविष्य की राजनीतिक दिशा का एक अहम सूत्रधार मान रही है।
सवाल यह उठता है कि क्या हर्ष संघवी भाजपा की उस नई पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जो आने वाले वर्षों में पार्टी की कमान संभालेगी? क्या यह बदलाव सिर्फ प्रशासनिक स्तर तक सीमित है या इसके पीछे गहरी रणनीतिक सोच छिपी हुई है?
सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं होता, लेकिन यह तय है कि गुजरात की राजनीति में आए इस बड़े बदलाव ने आने वाले समय के लिए कई संकेत दे दिए हैं। यह घटनाक्रम सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति तक महसूस किया जा सकता है।
भविष्य क्या मोड़ लेगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इतना साफ है कि भाजपा अब अपने पारंपरिक ढांचे को नए सांचे में ढालने की तैयारी में जुट चुकी है। हर्ष संघवी जैसे नए चेहरों की सक्रियता इसी बदलाव की कहानी कह रही है।
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